गुजरात की विविध स्थापत्यकला और शिल्पकला के बारेमे ::
दोस्तो आज हम गुजरात की कुछ एसी स्थापत्यकला के बारेमे जानेंगे जिसके बारेमे आपने सुना तो होगा लेकिन इतनी जानकारी आपको प्राप्त नहीं होगी। आज हम अशोक के शिलालेख, रुद्रमहालय, रानी की वाव, सीदी सैयद की जाली, मोढेरा का सूर्यमन्दिर, अदालज की वाव, सुदर्शन तलाव, अक्षरधाम, कांकरिया तलाव, मानिमंदिर, गुजरात विध्यापीठ, सोमनाथ मंदिर, द्वारका मंदिर, किर्तितोरण, धोलावीरा और लोथल के बारेमे जानेंगे। तो चलिए अब हम एक एक करके सभी स्थापत्यकला के बारेमे जानते है।
1) लोथल : (तालुका :धोलका, जिल्ला : अहमदाबाद)
यह सिंधुखिन की संस्कृति का बोहोत ही महत्वपूर्ण स्थल है। जो अहमदाबाद से लगभग 75 या 80 किलोमीटर के अंतर पर स्थित है। लोथल का अर्थ देखने जाए तो उसका अर्थ होता है "लाशों का ढेर". लोथल का समय ई.स. पूर्वे 2450 से 1900 तक का माना जाता है। लोथल के संशोधन कार्य मे श्री एस. आर. राव का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
लोथल के मकान पक्की ईंटों के बने थे। लोथल के रास्ते एकदूसरे से समकोण रूप से मिलते थे। लोथल मे बरतन बनाने के लिए माटी और पत्थर का उपयोग होता था। लोथल के लोग सर्प, पशु, वृक्ष और बरतन की पुजा करते थे। लोथल मे से मुद्राए, शतरंज, मापन के लिए मापपट्टी जैसी चिजे मिली हुई है।
2) धोलावीरा : (कच्छ)
धोलावीरा मे सबसे पहले 1967 मे हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिले थे। 1991 मे जगपति जोशी और रविंद्रसिंह बिष्ट के मार्गदर्शन अनुसार इसका संशोधन कार्य हुआ था। धोलावीरा कच्छ जिले के भचाउ तालुके के खदिरबेट मे स्थित है।
धोलावीरा तीन भाग मे साझा किया गया था। नगर आयोजन के लिए धोलावीरा प्रसिद्ध है। धोलावीरा को स्थानिक लोग 'कोटड़ा' के नाम से जानते है।
3) अशोक का शिलालेख : (जूनागढ़)
मोर्य सम्राट अशोक के द्वारा गुजरात के गिरनार की तलेटी मे दामोदर कुंड के पास यह शिलालेख बनवाया था। यह शिलालेख ब्राम्ही और पालि भाषा मे है। अशोक के शिलालेख की शोध कर्नल टोड के द्वारा हुई थी। इस शिलालेख को जेम्स प्रिंसेप के द्वारा उकेला गया था। जिसमे डॉ. भगवानलल इंद्रजीने सुधारा किया था।
अशोक का शिलालेख धर्म का उपदेश देता है। अशोक का यह शिलालेख उसके 14 शिलालेख पैकी एक है।
4) रानी की वाव : (पाटन)
पाटन की रानी की वाव सोलंकी वंश के शासक भीमदेव की प्रथम रानी उदयमती द्वारा स्थापित किया गया था। यह वाव जमीन से सात मंजिल ऊंची है। UNESCO द्वारा 2014 मे इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप मे स्थान दिया गया था।
5) रुद्रमहालय : (सिद्धपुर):
रुद्रमहालय के बांधकाम की शुरुआत मूलराज सोलंकी के द्वारा हुई थी। सोलंकी युग दे दौरान इसे बांधा गया था जो सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है। मूलराज सोलंकी के समय इसका काम पूर्ण हो नहीं सका था।
इसलिए सिद्धराज जयसिंह के द्वारा इसे पूरा बनाया गया था। रुद्रमहालय 2 मंजिल का है और 150 फिट ऊंचा है। अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा इसका द्वंश हुआ था।
6) सीदी सैयद की जाली : (अहमदाबाद)
सीदी सैयद के द्वारा बनाई गई भद्र के लाल दरवाजा के पास बनाई हुई यह मस्जिद उसकी जाली के लिए प्रसिद्ध है। यहा पर तीन बड़ी जालीया है। सीदी सैयद की जाली चार मीटर लंबी और सवा दो मिटर चौड़ी है।
वृक्ष की डाली जैसी आकृतिया इस जाली मे दिखने मिलती है। 1572 मे इस जाली को निर्माण हुआ था। इस जाली मे से लॉर्ड कर्ज़न एक जाली को अपने साथ ले जा रहे थे और मुंबई पहुँचते ही वह टूट गई थी।
7) मोढेरा का सूर्यमंदिर : (मोढेरा, तालुका : बहुचराजी, जिला : महेसाणा)
ई.स. 1026 के समय मे भीमदेव प्रथम के द्वारा सूर्यमंदिर का निर्माण हुआ था। मोढेरा के सूर्यमंदिर मे तीन भाग है। (1) गर्भगृह, (2) अंतराल, (3) सभामंडप. मोढेरा के सूर्यमंदिर मे 12 सूर्य की विविध मूर्तिया स्थित है। मंदिर का नक्षिकाम ईरानी शैली मे हुआ है। मोढेरा का सूर्यमंदिर पुष्पावती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर के बाहर के जलकुंड के आसपास 108 नन्हें मंदिर स्थित है। जनवरी मास मे उत्तरार्ध महोत्सव का आयोजन होता है।
मोढेरा के सूर्यमंदिर के पूर्व दिशा मे स्थित प्रवेशद्वार इस तरह से रचा गया है की सूर्य का किरण अंदर गर्भगृह तक जाके सूर्य की प्रतिमा मे मध्य मे स्थित मणि पर गिरकर समग्र मंदिर के गर्भगृह को प्रकाश से भर देता है।
8) अडालज की वाव : (गांधीनगर)
अहमदाबाद से 18 किलोमीटर के अंतर पर स्थित यह वाव है। ई.स. 1499 मे रानी रूड़ाबाई के द्वारा इसे बनाया गया था। रानी रूड़ाबाई ने उनके पति विरसिंह की याद मे यह वाव का निर्माण किया था।
इस वाव मे 5 मंजिल और तीन द्वार है। वाव की कुल लंबाई 84 मीटर है। अडालज की वाव के स्थापति भीमापुत्र मानसा है। इसके अंदर संस्कृत भाषा मे लेख है जिसमे से इसकी माहिती मिलती है।
9) सुदर्शन तलाव : (जूनागढ़)
सुदर्शन तलाव गिरनार के पास चंद्रगुप्त मोर्य के सूबे पुष्यगुप्त वैश्ये बनाया था। सुदर्शन तलाव सोनरेखा (सुवर्णसिकता) नदी के आगे बांध बांधकर इसे बनाया गया था।
स्कंदगुप्त के सूबे सुविशाख और चक्रपालित द्वारा इसका समारकाम किया गया था। सुविशाख द्वारा इस तलाव का समारकाम अपने स्वखर्च से किया था।
10) अक्षरधाम : (गांधीनगर)
अक्षरधाम का निर्माण 2 नवंबर 1992 मे शुरू किया था। गांधीनगर का आकर्षण है यह। 24 सितंबर 2002 को इसपर आतंकवादी हमला हुआ था। राजस्थान के गुलाबी पत्थरो मे से इसे बनाया गया है।
11) कांकरिया तलाव : (अहमदाबाद)
कांकरिया तलाव अहमदाबाद मे स्थित है। कांकरिया तलाव का निर्माण कुतुबुद्दीन अहमदशाह के द्वारा हुआ था। कांकरिया तलाव को होजे कुतुब के नाम से भी जाना जाता है। तलाव के बीच नगीना वाडी भी है। जो तलाव की सुंदरता मे बढ़ाव करता है।
12) मणिमंदिर : (मोरबी)
मोरबी मे आया हुआ मणिमंदिर सौराष्ट्र की एक प्रेमकथा का प्रतीक है। यह मंदिर मोरबी के राजवी वाघजी ठाकोर के द्वारा अपनी पत्नी मणिबा की याद मे बनवाया था। वाघ महल से प्रसिद्ध इस मंदिर मे लक्ष्मी-नारायण, राधा-कृष्ण जैसे अनेक मंदिर है।
इस मंदिर मे 130 जीतने रूम है। मणिमंदिर को 'गुजरात के ताजमहल' के रूप मे जाना जाता है।
13) गुजरात विध्यापीठ : (अहमदाबाद)
भारत के युवाओमे शिक्षण का संचार करने के लिए और देश की क्रांतिकारी प्रवृत्तिओ को प्रेरणा देने के लिए 1920 मे गांधीजी के द्वारा गुजरात विध्यापीठ की स्थापना की गई थी। गुजरात विध्यापीठ के प्रथम कुलपति गांधीजी थे।
14) सोमनाथ मंदिर : (गिर सोमनाथ)
सोमनाथ मंदिर को चन्द्र ने चाँदी का, श्रीकृष्ण द्वारा सुखड का और भीमदेव प्रथम द्वारा पत्थर का बनाया गया था। सोमनाथ मंदिर को महम्मद गजनवी के द्वारा और अल्लाउद्दीन खिलजी के द्वारा ध्वंस किया गया था।
सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग की प्रतिष्ठा 1951 मे राजेंद्रप्रसाद के हस्तक हुई थी। सोमनाथ मंदिर शैव संप्रदाय के 12 ज्योर्तिलिंग पैकी का प्रथम ज्योर्तिलिंग है। सोमनाथ के रक्षण के लिए हमीरजी गोहील वीरगति प्राप्त हुए थे। सोमनाथ मंदिर हिरण, कपिला और सरस्वती नदीके संगम स्थान पर स्थित है।
15) द्वारका मंदिर : (देवभूमि द्वारका):
गोमती नदी के तट पर स्थित यह मंदिर है। इसे 'जगतमंदीर' के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को 'पद्मनाभ' के द्वारा बनाया गया था। इस मंदिर मे दिन मे पाँच बाद धजा चढ़ाने का महत्व है। यह मंदिर 60 खंभो के ऊपर खड़ा है। द्वारका के इस मंदिर की 7 मंजिल है।
16) वड्नगर का कीर्तितोरण : (वडनगर)
सोलंकी राजा सिद्धरज जयसिंह के द्वारा इसे बनाया गया था। यह महेसाणा जिले के वडनगर मे स्थित है। सोलंकी राजा अपनी विजय की स्मृति के लिए एसे तोरण बांधते थे। इसकी ऊंचाई 40 फिट है और यह रेतीले पत्थर से बना हुआ है।
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